चतुर बहू
प्रमोद त्रिवेदी 'पुष्प'
बहुत पुरानी बात है। निमाड़ अंचल में नर्मदा नदी के किनारे एक गांव में एक किसान रहता था। उसका एक लड़का व एक बहू भी साथ रहते थे। बहू बहुत होशियार व साहसी थी। लेकिन उसके पीहर मेें कोई नहीं था।
रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक था। एक दिन पनघट पर स्त्रियां बतिया रही थीं। कोई अपने भाई के आने की बात कहती तो कोई अपने चाचा-भतीजे के आने की बात कहती तभी पास से विमला ने पूछा, ‘पारू! तुझे कौन लेने आ रहा है।’ वह बोली, ‘मेरा तो पीहर में कोई है ही नहीं। मुझे कौन लेने आयेगा।’ इस तरह वह उदास होकर घर चली आयी।
उनकी बातें एक ठग चुपके से सुन रहा था। उसने मन ही मन सारी योजना तुरंत बना ली। वह पारू के पीछे-पीछे उसके घर पहुंच गया। किसान आंगन में खाट पर बैठा था। जाते ही ठग ने ‘राम-राम’ की। किसान ने उसे बैठने को कहा। बैठकर ठग बोला, ‘मैं तुम्हारी बहू का दूर के रिश्ते का मामा हूं। ब्याह के समय मैं परदेस गया था। अभी लौटा हूं। रक्षाबंधन पर मुझे इसकी याद आयी,सो मैं लेने चला आया।’
किसान बहुत खुश हुआ कि चलो अपनी बहू को कोई रिश्तेदार लेने तो आया। उसने अंदर जाकर पत्नी से कहा कि अपनी बहू को उसके मामा लेने आये हैं। 4-6 दिनों के लिये उसे भेज दें। लेकिन बहू ने ‘ना’ कर दी। उसके सास-ससुर ने जोर देकर कहा, ‘ ऐसा कहीं होता है।’ आखिर बहू कितनी भी बहादुर हो या चतुर हो, वह है तो बहू ही। उसकी कोई बात नहीं मानी गई। मजबूर होकर बहू को तैयार होना पड़ा। खूब गहने पहनाकर ठग मामा के साथ रवाना कर दी गई। ठग और बहू घोड़ी पर बैठकर जाने लगे। ठग ने चोर-डाकू का भय बताकर रास्ते में बहू से गहने पोटली में बंधवा लिये। चलते-चलते घना जंगल आया। तभी वहां ठग के दो साथी आ मिले। कहने लगे, ‘वाह! भाई! आज तो तू माल के साथ सुन्दर लड़की भी ले आया।’ सुनकर ठग मामा भड़क गया। बोला, ‘ऐ! लड़की भी मेरी है और माल-धन भी मेरा है।’
धीरे-धीरे उनमें विवाद होने लगा। यहां तक कि वे झगडऩे लगे। पहले तो बहू डर गई लेकिन उसने हिम्मत से काम लिया। बोली, ‘तुम लोग लड़ते क्यों हो? मैं तीन तीर तीन दिशा में छोड़ती हूं। जो पहले तीर ढंूढ़कर ले आयेगा। उसके सथ मैं चली चलंूगी। आखिर तुम सभी भाई-भाई हो। अत: मेरे मामा हो।’ बहू ने चतुराई से काम लिया।
sundeep joshi
ठगों को बात समझ में आ गई। उन्होंने तीन तीर और एक कमान बहू के हाथ में दिये। बहू ने दूर लम्बी-घनी घास की ओर तीर छोड़ दिये। ठग तीर लेने के लिए दौड़े। इधर बहू ने गहनों की पोटली उठाई और घर की ओर दौड़ लगाई। क्योंकि घोड़ी चरते-चरते कहीं गायब हो गई थी।
दौड़ते-दौड़ते वह थक गई। शाम हो गई। अंधेरा होने पर वह एक घना पेड़ देखकर रुक गई। फिर पेड़ पर चढ़कर छिप गई। उधर ठग तीर ढूंढ़कर काफी देर के बाद लौटे तो उन्हें लड़की नहीं दिखाई दी। वे बोले, ‘लड़की तो चंट निकली। हमें उल्लू बनाकर भाग गई।’ ‘ एक ने कहा, ‘ चलो उसके पीछा करते हैं। उसकी पोटली में माल बहुत है। तीनों ने सहमति जताई।
तीनों ने दौड़ लगाई। दौड़ते-दौड़ते थक जाने पर संयोग से उसी पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। दो ठगों को नींद जल्दी लग गई। लेकिन ठग मामा को नींद नहीं आयी। ऊपर से बहू सब अनुमान कर रही थी। उसकी चूड़ी की खनखनाहट ठग मामा के कान में पड़ी। उसने कहा, ‘कौन छिपा है,पेड़ पर?’ ऊपर से चतुर बहू ने फुसफुसाकर कहा, ‘मामा ऊपर आ जाओ। यह पोटली ले जाओ। और मुझे भी ले जाओ।’ खुश होकर ठग मामा तुरंत पेड़ पर चढ़ गया। चतुर बहू ने मामा से मीठी-मीठी बातें कीं। फिर अचानक उसने कहा, ‘मामा,तुम्हारी जीभ में क्या हो गया, जरा बताओ तो?’ मामा ने ज्यों ही मुंह खोला, बहू ने अपनी छोटी-सी कटार से जीभ काट दी और साथ ही उसकी नाक भी काट दी। ठग इस आक्रमण से भौचक्का रह गया। बहू के जरा से धकियाने से नीचे गिर पड़ा।
दोनों ठग गहरी नींद में थे। उन पर अचानक ठग मामा के गिरने से उन्होंने समझा कि भूत आया। बिना रुके वे भाग खड़े हुए। ठग मामा पीछे-पीछे हाथ हिला-हिला ‘ हू-हू-हू—‘ की आवाज निकाले दौड़ रहा था। ठग समझे कि भूत पीछे लगा है। अत: वे और तेज दौडऩे लगे। उधर बहू पेड़ पर से उतर कर बगल में पोटली दबाकर अपने गांव की तरफ भाग चली। भागते-भागते आखिर घर पहुंच कर ही दम लिया। घर पर सभी को आप बीती सुनाई। कहने लगी, ‘ यदि मैं हिम्मत और होशियारी से काम नहीं लेती तो आज यहां नहीं दिखाई देती। वह ठग था, मेरा मामा नहीं था।’ सबने बहू की चतुराई की भरपूर प्रशंसा की।